उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
भगवान शिव जिन्होंने इस सृष्टि की रचना की जो समाज में कई नाम से जानें जाते हैं। जिनमे भोलेनाथ, महाकाल नाम प्रमुख हैं। भक्त इनको रिझाने में लगे रहते हैं। इनको अपना लिया तो मौत भी उस इंसान के सामने आने में घबराती है। इन्हें तभी देवों के देव महादेव कहा गया है। इनका न ही कोई बचपन है और न ही माता पिता इन्होंने स्वयं को इजात किया है। यह माना गया है कि किसी इंसान ने भगवान शिव को प्रसन्न कर दिया तो वह इंसान अपने आप मे ही अलग व्यक्तित्व का होगा।
सभी प्रकार की पीड़ा का हल भगवान शिव के पास उपलब्ध है। लेकिन जब बात भगवान शिव की आराधना की होती है तो कलयुग में सब मे यह पाया गया है कि भक्तों के पास समय का अभाव है वह भगवान की पूजा के लिए समय निकाल पाने में असमर्थ है।
पहले के युग मे केवल मूर्ति पूजन से ही फल प्राप्त हो जाता था परन्तु आज के युग मे यह होना असंभव सा प्रतीत होता है। भविष्यपुराण में भी इस बात का जिक्र आता है कि कलयुग में बिना मंत्र ध्यान और जप से इंसान सुख प्राप्त नहीं कर सकता है। तो यदि हम भगवान शिव की अपार कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो Mahamrityunjay Mantra नित्य रोज जप बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है।
शिवरात्रि पर भोलेनाथ करेंगें कष्टों को दूर
भगवान शिव का जितना ही गुस्सा होना जाना जाता उससे अधिक उनका प्रेम अपने भक्तों के प्रति जग जाहिर है। तभी शिव जी को कई नामों से नवाजा गया है जिसमे भोलेनाथ प्रमुख हैं।
Mahamrityunjay Mantra in Hindi कथा
यह जीवन काल का क्रूर सत्य है जो इस धरती पर जन्म लेने वाला हर व्यक्ति को कभी न कभी म्रत्यु से सामना करना ही पड़ता है। परन्तु अगर वह इंसान के ऊपर ईश्वर का आशीर्वाद हो तो वह अपने मौत का समय बढ़ा सकता है। उदाहरण सहित कहा जाए तो भगवान शिव ने जब क्रोधित होकर श्री गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया था उसके बाद उन्होंने श्री गणेश को हाथी का सर लगाकर फिर से जीवित कर दिया। इससे साबित होता है कि भगवान शिव पापियों के नष्ट के साथ जीवन भी अर्पित कर देते हैं। यह अपने भक्तों के जीवन मे कभी रोग , कष्ट नहीं आने देते।
यह कथा की शुरुआत तब से हुई जब भगवान शिव के परम भक्त ऋषि मृकंडु और उनकी पत्नी मरुदवती जिन्हें कई सालों से पुत्र की पूर्ति नहीं हो रही थी। तब दोनों ने कठोर तप किया जिससे भगवान शिव बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें आशिर्वाद रूपी वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने अपने लिए एक सेहतमंद बालक का आशीर्वाद मांगा। भगवान शिव ने उन्हें पर्याप्त विकल्प में से चुनने को कहा कि वह बुद्धि बालक चाहते हैं जिसकी उम्र छोटी रहें या मंदबुद्धि बालक जिसकी आयु दीर्घ हो। तब ऋषि ने बुद्धि का विकल्प चुना। भगवान ने कहा वह बालक केवल 16 साल की आयु तक जीवित रहेगा। उस बालक का नाम मार्कण्डेय रखा गया। मार्कण्डेय बचपन से बुद्धि से भरा हुआ तो था ही साथ मे वह अपने पिता जी की तरह शिव भक्त भी। वह जंगल मे सब का प्रिय हो गया था। परन्तु जैसे ही उसे इस बारे में ज्ञात हुआ कि वह 16 बरस की उम्र में ही मौत को गले लग जाएगा तब वह अकेले जंगल मे भगवान शिव का तप करने चला गया , जहाँ उसने मिट्टी से शिवलिंग की स्थापना की। भगवान शिव ने खुश होकर मार्कण्डेय की जान बक्श दी और यमराज से कहा कि यह कभी नही म्रत्यु होगा। उस वक्त मन्त्र में मार्कण्डेय ने यही महामृत्युंजय मंत्र जपा था।
महत्व Mahamrityunjay Mantra का
यूँ तो Mahamrityunjay Mantra के कई महत्व बताए जाते हैं जैसे कि यह मनुष्य की म्रत्यु को टालने में प्रबल है। कुंडली मे किसी भी प्रकार की कोई पीड़ा हो या घर मे क्लेश का माहौल बार बार बनता हो तो भी यह कारगर है। Mahamrityunjay Mantra का जप प्रातः 2 से 4 बजे करना चाहिए किन्तु यदि इस समय जप नहीं हो पाता है तो प्रातःकाल और सायंकाल में स्नान और सभी जरूरी कार्यों से निर्वत होकर, कम से कम 5 बार महा मृतुन्जय मन्त्र, माला का जाप करना चाहिए। ध्यान रखिए जप के दौरान हाथ मे रुद्राक्ष की माला अवश्य रखें। ध्यान के समय, मन किसी भी अन्य कार्य में नहीं होना चाहिए। जप काल में शिवजी की प्रतिमा, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र का पास में रखना काफी अच्छा समझा जाता है। तथा मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए।