Kanyadan

Kanyadan – कन्यादान क्यों और कैसे होता है?

शादी भारतीय परंपरा का सबसे अभिन्न अंग है। एक ऐसा त्योहार जब दो भिन्न किस्म के इंसान एक हो जाते हैं तथा उनके उनके परिवार भी एक ही में सम्मिलित हो जाते हैं। घर की बेटी जैसे ही जीवन का 18वां पायदान पार करती है घर में सबको बेटी की शादी की चिंता सताने लगती है। Kanyadan समाज का सबसे बड़े दान की उपलब्धि हासिल कर चुका है। शादी कई रस्मों का गठजोड़ है जिसमे से कई रस्म हँसाते हैं तो कई रस्म धर्म के मुताबिक निभाए जाते हैं तो कई रस्म बेहद जरूरी होती है जिसके बजना विवाह संपन्न नही होता। इसी में Kanyadan रस्म का नाम प्रमुख हैं। यह रस्म बहुत ही भावुक षण भी अपने साथ ले आता है इस रस्म में आप सर्व सहमति के साथ अपने घर की उस गुड़िया का हाथ जो आपके आंगन में खेली , शिक्षा ग्रहण की, उसका हाथ किसी दूसरे शख्स को सौंप देंगे।

Kanyadan का सच्चा अर्थ

यहाँ Kanyadan का अर्थ का ज्ञान इसीलिए देना आवश्यक है क्योंकि Kanyadan का अर्थ के बारे में लोगों में मतभेद हैं कई समाज मे इस परंपरा के खिलाफ जाकर यह कहते हैं कि कन्या थोड़े ही न कोई वस्तु है जिसे हम दान कर दें। समाज में यह वहम फैलाया जाता है कि हिन्दू समाज मे बेटियों को भोज समझा जाता है। परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं है हिन्दू समाज में Kanyadan बहुत ही प्रमुख दान माना गया है। जिसमें कन्यादान का अर्थ होता है कन्या के अभिभावकों की जिम्मदारियों का ससुराल पक्ष विशेषकर कन्या के वर पर स्थानांतरण। जो माता-पिता अभी तक कन्या का लालन-पालन करते आये हैं, उसकी सुख-सुविधाओं, शिक्षा-दीक्षा का भार उठाते आये हैं वे अब अपने सारे दायित्व वर पक्ष पर डाल देते हैं। इसका तात्पर्य है कि कन्यादान के पश्चात कन्या की सारी जिम्मेदारियां ससुराल पक्ष पर हैं। ससुराल पक्ष का दायित्व हो जाता है कि वह इस नये परिवेश में कन्या को यह आभास न होने दे कि वह किसी अन्जान जगह पर आई है। वरन कन्यादान को स्वीकार करते समय जब पाणिग्रहण कर इस दायित्व को स्वीकार किया जाता है उसी समय वर एवं उसे अभिभावकों को यह संकल्प लेना होता है कि अपने उत्तरदायित्व को वह बखूबी निर्वाह करें।

कैसे करें Kanyadan ?

Kanyadan एक ऐसा भावुक पल है जब आप अपनी फूल सी परी का हाथ एक नौजवान व्यक्ति को सौंप देते हैं। तो Kanyadan की रस्म में कन्या के हाथ हल्दी से पीले किये जाते हैं। इसके पश्चात कन्या के माता-पिता अपने हाथ में कन्या के हाथ रखते हैं। इसके साथ ही गुप्तदान का धन भी रखा जाता है। इसके साथ में पुष्प रखकर संकल्प बोलते हैं और कन्या के हाथ वर के हाथ में सौंप देते हैं। वर इन हाथों को पूरी जिम्मेदारी के साथ संकल्प लेते हुए स्वीकार करता है। इसके पश्चात कन्या के कुल गोत्र आदि पितृ परंपरा से नहीं बल्कि पति परंपरानुसार माने जायेंगें। कन्या व वर को इस परिवर्तन की हिम्मत मिले इसके लिये देवताओं को साक्षी मानकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। कन्या व वर पक्ष के बड़े बुजूर्गों का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

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