शिव,भोलेनाथ, महादेव, पशुपतिनाथ, या कहो नटराज या महाकाल। हर नाम शिव जी का व्यक्तित्व दर्शाता है। वह अपने भोलेपन के लिए जितना जाने जाते हैं उतना ही अपने क्रोध के लिए भी। भोले के भक्त इनकी आराधना के लिए खासकर शिवरात्रि का बेसब्री से इंतजार करते हैं। शिव जी को रिझाने के लिए भक्त सोमवार को व्रत रखते हैं जिसे सोलह सोमवार का व्रत से नवाजा गया है। भगवान शिव की विस्तृत जानकारी शिव पुराण में लिखित है जिसमें इस बात का भी जिक्र है जब शिव जी को अपने कंठ में विष रखना पड़ा जिसके लिए शिव जी को नीलकंठ नाम से भी जाना जाता है।
शिवरात्रि पर भोलेनाथ करेंगें कष्टों को दूर
भगवान शिव का जितना ही गुस्सा होना जाना जाता उससे अधिक उनका प्रेम अपने भक्तों के प्रति जग जाहिर है। तभी शिव जी को कई नामों से नवाजा गया है जिसमे भोलेनाथ प्रमुख हैं।
सोलह सोमवार से सम्बंधित कथा
सोलह सोमवार की व्रत कथा भिन्न है , परन्तु यह कथा भी बहुत महत्वपूर्ण में से एक है। भक्त इसका उच्चारण करके रंक भी राजा बन जाता है। ध्यान रहे जब यह कथा पढ़े तो आप श्रद्धा समेत पढ़े।
एक सुंदर कन्या थी, जिसे अपनी सुंदरता पे बहुत अभिमान था। वह स्वंय को स्वर्ग की अप्सरा स्वरूप मानती थी। कहा जाता है कि जब व्यक्ति में अभिमान का दायरा बढ़ जाता है तो वह अपने दिमागी शक्ति का इस्तेमाल त्याग देता है। इस कन्या के मन में भी एक दिन कुछ ऐसा ही आया। उसने विचार किया कि संभवतः वो भी अपनी सुंदरता से किसी की तपस्या भंग कर सकती है। या पूजा करते पुजारियों का ध्यान भटका सकती है। इस विचार के साथ उसने पहले अपना सोलह श्रृंगार किया। अभिमानी कन्या ने अपने कदम वहाँ चला दिए जहाँ ऋषिगण भगवान् शिव की पूजा कर रहे थे। वो अपनी सुन्दरता से ऋषियों को शिव पूजा से विमुख करने का प्रयास करने लगी। ऋषि अपनी पूजा में मग्न रहे। किसी ने भी उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। इस दृश्य ने उसका अभिमान चकनाचूर कर दिया, अब उसे अपनी गलती का ज्ञान होने लगा अलर वह अब इसका परश्चाताप करना चाहती थी।
उसने ऋषियों से पूछा। इस पर उन्होंने कहा कि तुमने अपने सोलह श्रृंगार के बल पर हमारा धर्म भ्रष्ट करने का जो पापयुक्त प्रयास किया है। उस पाप की मुक्ति के लिए तुम काशी में निवास करो और वहां सोलह सोमवार का व्रत करो। इससे तुम पाप मुक्त हो जाओगी। इसके पश्चात् उस कन्या ने ऐसा ही किया। परमपिता परमात्मा शिव की कृपा से उस कन्या का मन भक्ति के मार्ग पर चल पड़ा। अपना जीवन भोग कर उसने शिवलोक में स्थान पा लिया। जय भोले नाथ। ॐ नमः शिवाय
शिव जी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
आरती का उच्चारण हमेशा खड़े होकर करें ।