अंग्रेजी तिथि अनुसार जुलाई या अगस्त महीने में आने वाला यह महोत्सव महिलाओं के लिए बहुत महत्व रखता है, चाहे वह महिला विवाहित हो या अविवाहित हो। भादो मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाए जाने वाला यह त्योहार जिसे कजरी तीज कहकर पुकारा जाता है इसका अन्य नाम कजली तीज भी।
यह त्यौहार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार समेत हिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रमुखता से मनाया जाता है। इनमें से कई इलाकों में कजरी तीज को बूढ़ी तीज व सातूड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है।
हरियाली तीज, हरतालिका तीज की तरह कजरी तीज भी सुहागन महिलाओं के लिए अहम पर्व है। वैवाहिक जीवन की सुख और समृद्धि के लिए यह व्रत किया जाता है। इस त्योहार में महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए भगवान से प्रार्थना करती है।
ऐसी मान्यता है कि महिलाओं के व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती उनकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। महिलाओं भगवान शिव और माता पार्वती से सुखी दाम्पत्य जीवन की कामना करती हैं। ऐसी भी माना जाता है कि अगर किसी लड़की की शादी में कोई बाधा आ रही है तो इस व्रत को जरूर रखें। काफी लाभकारी होगा।
कजरी तीज की पूजा विधि
इस शुभ अवसर पर नीमड़ी माता की पूजन करनी चाहिए । इसकी लिए मिट्टी व गोबर से दीवार के सहारे एक तालाब जैसी आकृति बनाई जाती है (घी और गुड़ से पाल बांधकर) और उसके पास नीम की टहनी को रोप देते हैं। तालाब में कच्चा दूध और जल डालते हैं और किनारे पर एक दीया जलाकर रखते हैं। थाली में नींबू, ककड़ी, केला, सेब, सत्तू, रोली, मौली, अक्षत आदि रखे जाते हैं। इसके अलावा इस तीज में महिलाएं स्नान के बाद भगवान शिव और माता गौरी की मिट्टी की मूर्ति बनाती हैं, या फिर बाजार से लाई मूर्ति का पूजा में उपयोग करती हैं।
व्रती महिलाएं माता गौरी और भगवान शिव की मूर्ति को एक चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर स्थापित करती हैं। इसके पश्चात वे शिव-गौरी का विधि विधान से पूजन करती हैं, जिसमें वह माता गौरी को सुहाग के 16 समाग्री अर्पित करती हैं, वहीं भगवान शिव को बेल पत्र, गाय का दूध, गंगा जल, धतूरा, भांग आदि चढ़ाती हैं। फिर धूप और दीप आदि जलाकर आरती करती हैं और शिव-गौरी की कथा सुनती हैं।
कजरी तीज का महत्व
कजरी तीज के वक्त महिलाएं नई दुल्हन की तरह खुद को सजाती है, संवारती है और भगवान शिव एवं मां पार्वती की पूजा आराधना करती है। एक जोड़े को लम्बी आयु के लिये शिव पार्वती की जोड़ी प्रेरणादायक है। यदि इस दिन शिव जी पार्वती जी की जोड़ी को दिल से पूजा जाए तो विवाहित जीवन सुखमय रहेगा । कजरी तीज के दिवस विवाहित स्त्रियां निर्जला व्रत रखती है ताकि उनके पति की आयु दीर्घ हो, तथा अविवाहित स्त्रियां का भी व्रत का महत्व है, जिनसे उनको मनवांछित वर की प्राप्ति हो।
इस पवित्र तीज पर चावल, चना तथा गेहूं आदि में घी और मेवा मिलाकर पकवान बनाये जाते है और चन्द्र को अर्ध्य देने के बाद इस भोजन का प्रसाद खाकर व्रत तोड़ते हैं। इस दिन गौमाता को आटे की लोईयां बनाकर उन पर घी और गुड लगाकर गाय को खिलाई जाती है, तत्पश्चात व्रत पूरा होता है। इस दिन मौसम बहुत ही सुहावना होता है, बारिश की बूंदों के बीच महिलायें झूले झूलती है, नाचती-गाती है तथा विशेष गाने गाती है। इस दिन गीत गाने की परम्परा है, यूपी और बिहार में लोग ढोलक बजाते है और कजरी तीज के ऊपर बने गाने गाते है।
कजरी तीज के नियम
- कजरी तीज का व्रत निर्जला रहकर ही किया जाता है, परन्तु कोई बीमार है या गर्भवती है तो फलाहार का सेवन किया जा सकता है।
- नीमड माता को रोली, वस्त्र, सुहागनों के श्रृंगार का सामान चढ़ाना चाहिए। इसके बाद माता को फल और कुछ दक्षिणा दे और कलश पर रोली बांधें।
- इस दिन चाँद को अर्ध्य देना जरुरी है, इसलिए चाँद के दर्शन होते ही चाँद को रात्रि में लगभग 12 बजे से पहले तक अर्ध्य देकर व्रत खोला जाता है।