Navratri 2020 | नवरात्र में कलश स्थापना और पूजा विधि

संस्क्रत शब्द ‘नवरात्र’ जिसका अर्थ है ‘नौ रातें’ यानी वह नौ रातें जिसमे भक्त माँ के नो रूपों शक्ति की आराधना करते हैं। साल 2019 में 29 सितंबर से नवरात्र का शुभारंभ हो रहा है जो 7 अक्टूबर तक रहेगा , जिसमें व्यक्ति माँ का ध्यान,व्रत और रात्रि को गरबा नृत्य करेंगें। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। Navratri वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र,आषाढ,अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। Navratri के नौ रातों में तीन देवियों – महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। नवरात्र के आरंभ में प्रतिपदा तिथि को कलश या घट की स्थापना की जाती है। कलश को भगवान गणेश का रूप माना जाता है। हिन्दू धर्म में हर पूजा से पहले गणेश जी की पूजा का विधान है इसलिए Navratri की शुभ पूजा से पहले कलश के रूप में गणेश को स्थापित किया जाता है।

Navratri कलश स्थापना की महत्वपूर्ण वस्तुएं

Navratri कलश स्थापना से पूर्व भक्तों को इस बात की अवश्य ध्यान रखें कि कोई वस्तु छूट न जाए। निम्मनलिखित वस्तु कलश स्थापना के लिए अनिवार्य है।

  • मिट्टी का पात्र और जौ
  • शुद्ध साफ की हुई मिट्टी
  • शुद्ध जल से भरा हुआ सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश
  • मोली (लाल सूत्र)
  • साबुत सुपारी
  • कलश में रखने के लिए सिक्के
  • अशोक या आम के 5 पत्ते
  • कलश को ढकने के लिए मिट्टी का ढक्कन
  • साबुत चावल
  • एक पानी वाला नारियल
  • लाल कपड़ा या चुनरी
  • फूल से बनी हुई माला

Navratri कलश स्थापना की विधि

कलश में स्वंय माँ का रूप वास करता है। व्यक्ति को कलश स्थापना करने से पूर्व उस स्थान को अच्छे से साफ कर लें। एक लकड़ी का फट्टा रखकर उसपर लाल रंग का कपड़ा बिछाना चाहिए। इस कपड़े पर थोड़ा- थोड़ा चावल रखना चाहिए। चावल रखते हुए सबसे पहले गणेश जी का स्मरण करना चाहिए। एक मिट्टी के पात्र (छोटा समतल गमला) में जौ बोना चाहिए। इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करना चाहिए। कलश पर रोली से स्वस्तिक या ऊं बनाना चाहिए। कलश के मुख पर रक्षा सूत्र बांधना चाहिए। कलश में सुपारी, सिक्का डालकर आम या अशोक के पत्ते रखने चाहिए। कलश के मुख को ढक्कन से ढंक देना चाहिए। ढक्कन पर चावल भर देना चाहिए। एक नारियल ले उस पर चुनरी लपेटकर रक्षा सूत्र से बांध देना चाहिए। इस नारियल को कलश के ढक्कन पर रखते हुए सभी देवताओं का आवाहन करना चाहिए। अंत में दीप जलाकर कलश की पूजा करनी चाहिए। कलश पर फूल और मिठाइयां चढ़ाना चाहिए।

Navratri कलश स्थापना समय ध्यान योग्य बातें

नवरात्र में कलश स्थापना का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है, इसमें स्वंय माता का वास होता है। भक्तों को इसे स्थापना से पूर्व कुछ विशेष बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।

देवी माँ को लाल रंग बेहद प्रिय है, इसीलिए नवरात्र में माँ को लाल रंग के वस्त्र, रोली, लाल चंदन, सिन्दूर, लाल साड़ी, लाल चुनरी, आभूषण तथा खाने-पीने के सभी पदार्थ जो लाल रंग के होते हैं, वही चढ़ाए। “या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।” इस मन्त्र हर रोज ध्यान करें। इसी मन्त्र के साथ कलश की स्थापना होती है जो 9 दिनो तक एक ही स्थान पर रखी  जाती है। घटस्थापना के लिए दुर्गाजी की स्वर्ण अथवा चांदी की मूर्ति या ताम्र मूर्ति उत्तम है। अगर ये भी उपलब्ध न हो सके तो मिट्टी की मूर्ति अवश्य होनी चाहिए जिसको रंग आदि से चित्रित किया गया हो। गंगाजल, नारियल, लाल कपड़ा, मौली, रोली, चंदन, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, ताजे फल, फल माला, बेलपत्रों की माला, एक थाली में साफ चावल रखें। घटस्थापन के स्थान पर केले का खंभा, घर के दरवाजे पर बंदनवार के लिए आम के पत्ते, तांबे या मिट्टी का एक घड़ा, चंदन की लकड़ी, हल्दी की गांठ, 5 प्रकार के रत्न रखें। दिव्य आभूषण देवी को स्नान के उपरांत पहनाने  चाहिए।

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