ज्योतिष शाश्त्र विज्ञानं की एक मात्र शाखा है जिसकी मदद से हम भूत और वर्तमान के अतिरिक्त भविष्य में भी होने वाली घटनाओ की सही जानकारी भी देने में सक्षम है। ज्योतिष विज्ञानं से हमें यह जानकारी जन्म कुंडली (Janam Kundali) के माध्यम से मिलती है। जन्म कुंडली एक ऐसा महत्वपूर्ण प्रप्रत्र है जो वायुमंडल के सभी ग्रहों के स्थिति और मनुष्य के जीवन के विभिन्न भागों को सम्बंधित करता है। उन ग्रहों की वर्तमान स्थिति को देखकर भविष्य में होने वाली गति और उससे उत्पन्न होने वाली स्थिति का अनुमान लगाया जाता है और उस गृह की उस स्थिति के अनुसार मानव जीवन में होने उतार-चढाव की जानकारी दी जाती है।
कुंडली में विवाह योग
क्या आप जानते हैं कि जातक की कुंडली में मौजूद ग्रहों की दशा से व्यक्ति के विवाह को लेकर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। सिर्फ पूर्वानुमान ही नहीं बल्कि यह भी कि व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सफल रहेगा या नहीं।
जन्म कुंडली वायुमंडल में उपस्थित सूर्य, चन्द्रमा, प्रथ्वी, और अन्य ग्रहों, नक्षत्रों की स्थिति पर आधारित होती है। मनुष्य के जन्म के समय समस्त हम गृह, उपग्रह, सूर्य नक्षत्रों इत्यादि की स्थिति को हम भागोलिक दिशाओं के अनुसार एक निश्चित प्रारूप में नोट कर लेते है। जिसे हम जन्म कुंडली ऑनलाइन (Online Janam Kundali) का नाम देते है। प्रथ्वी की गति के अनुसार हम प्रथ्वी को केंद्र मानकर सूर्य के सामने पड़ने वाले भाग को देखते है तो प्रथ्वी से लगभग 30 अंश का कोण होता है और प्रथ्वी के पूरे परिपथ को इस भाग से विभाजित करते है तो हमें 12 बराबर भाग प्राप्त होते है इन्हें हम राशियाँ (Rashiya) या कुंडली के भाव कहते है।राशिफल की गणना भी इन्ही भाव के अनुसार ही करते है। हमारे जीवन में होने वाली सारी घटनाओ की जानकारी कुंडली के इन्ही भाव से पता चलती है। आइये देखते है कुंडली का कौन सा भाव हमारे जीवन की किस घटना से सम्बंधित है?
जन्म कुंडली (Janam Kundali) के सभी भाव का मानव जीवन से सम्बन्ध
जन्म कुंडली का प्रथम भाव
प्रथ्वी की दैनिक गति के कारण प्रत्येक राशि 24 घंटे में एक बार पूर्व दिशा के क्षैतिज में अवश्य आती है। जन्म के समय जो राशि पुर्वी क्षितिज में होती है मनुष्य की प्रथम भाव की राशि होती है।इसे लग्न राशि, हीरा, प्रथम केंद्र, तनु आदि नामों से भी जाना जाता है| प्रथम भाव (Pratham Bhav) की प्राकृतिक राशि मेष और स्वामी मंगल है। प्रथम भाव जातक के शरीर, कद, काठी-काठी, रंग-रूप, और उस व्यक्ति का जीवन के प्रति सामान्य दृष्टिकोण को प्रदर्शित करती है। शारीरिक गठन में अनुवांशिक और भौगोलिक प्रभाव लग्न की विशेषताओं के साथ सम्मिलित रहता है।
जन्म कुंडली का द्वतीय भाव
प्रथम भाव का पता चलने के बाद हम द्वतीय भाव को भी निर्धारित कर लेते है। कुंडली के द्वतीय भाव को हम धन-भाव भी कहते है। द्वतीय भाव (Ditiye Bhav) की प्राकृतिक राशि वृषभ और स्वामी गुरु है। द्वतीय भाव से जातक का कुटुंब-परिवार, पडोसी, दायीं आख, वाणी, विद्या, सोना, चांदी, भोजन, चल-अचल संपत्ति, वाकपटुता इत्यादि का पता चलता है। जातक की म्रत्यु का पता भी इसी भाव से चलता है। अतः जन्म कुंडली का यह भाव मारक भाव भी कहलाता है।
जन्म कुंडली का तृतीय भाव
कुंडली के द्वतीय भाव के बाद अगला भाव तृतीय भाव होता है। इसे बंधू-भाव भी कहते है। जैसा की इस भाव के नाम से ही स्पष्ट है इस भाव में जातक के भाई, बंधू, मित्र, पडोसी व् सहकर्मियों से संबंधो का पता चलता है। जिस जातक के कुंडली के तृतीय भाव (Tritiye Bhav) में किसी अच्छे गृह का प्रभाव होता है उसे अपने भाई, मित्रो, सहकर्मियों से अच्छा सहयोग प्राप्त होता है। जिससे वह सफलता प्राप्त करता है। शरीर में यह भुजाओं से सम्बन्ध रखता है।
जन्म कुंडली का चतुर्थ भाव
तृतीय भाव के बाद चतुर्थ भाव (Chaturth Bhav) सुनिश्चित करना होता है। इसे मात्र भाव या सुख का घर कहते है। इसमें जातक के जीवन का सुख और माता से मिलने वाले सहयोग को देखा जाता है। इसमें जातक का व्यतिगत सुख जैसे घर, वाहन, नौकर इत्यादि चीजे देखी जाती है। इस घर में मनुष्य के शरीर में क्षाती, फेफड़े, उदर इत्यादि चीजो के बारे में देखा जाता है। इस भाव से मनुष्य का मानसिक शांति को भी देखा जाता है। यहाँ से जातक के रिश्तेदारों के बीच सम्बन्ध और जमीन जायदाद भी देखा जाता है।
जन्म कुंडली का पंचम भाव
जन्म कुंडली के पंचम भाव (Pancham Bhav) की संतान भाव या सत-भाव भी कहा जाता है। जैसा की इस भाव के नाम से पता चलता है| इस भाव से जातक के संतान सुख देखा जाता है। इसके साथ-साथ जातक के मानसिक व् बौधिक स्तर को देखा जाता है। शारीरिक स्तर पर यह जातक का पित्ताशय, रीढ़ की हड्डी, जिगर इत्यादि चीजो के बारे में भी इसी घर से देखा जाता है। इस भाव में किसी बलवान गृह के होने से जातक की संतान, मानसिक स्तर, और शरीर से स्वस्थ रहता है। जातक उच्च शिक्षा प्राप्त कर उसे व्यवसाय बनाने में सक्षम होता है।
जन्म कुंडली का षष्टम भाव
कुंडली का यह भाव को शत्रु भाव कहा जाता है। इस भाव के अध्धयन से जातक के जीवन काल में शत्रुओं और प्रतिद्वंदियों के बारे में पता चलता है। यह भाव जातक के लड़ाई-झगड़े से होने वाले नुक्सान और फायदे के बारे में बताता है। शारीरिक स्तर पर यह घर पेट के निचले हिस्से छोटी आंत, गुर्दे, उनकी कार्यप्रणाली और आसपास के अन्य हिस्सों के बारे में बताता है। बुरे ग्रह का प्रभाव इस घर में होने से जातक शरीर के इस हिस्से से पीड़ित रहता है।
जन्म कुंडली का सप्तम भाव
जन्म कुंडली के सप्तम भाव (Saptam Bhav) से जातक की शादी और वैवाहिक जीवन के बारे में पता चलता है। इस घर में किसी बुरे गृह का प्रभाव होने से जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहता है। जातक की शादी में परेशानियाँ, लड़ाई-झगड़े, तलाक इत्यादि को देखा जाता है और लम्बे समय तक चलने वाले प्रेम संबंधो का भी इसी घर से पता चलता है। शादी- विवाह के अतिरिक्त नौकरी या व्यवसाय को भी इसी घर से देखा जाता है। अच्छे गृह का प्रभाव इस घर में होने से जातक का नौकरी व् व्यवसाय में सफलता हासिल होती है। शादी के लिए वर-बधू कुंडली-मिलान भी इसी घर से देखा जाता है।
जन्म कुंडली का अष्टम भाव
कुंडली का यह घर जातक की आयु को दर्शाता है। जातक के लग्न भाव और अष्टम भाव (Astam Bhav) दोनों में किसी एक में किसी प्रबल गृह के प्रभाव होने से जातक की आयु सामान्य या सामान्य से अधिक होती है। इन्ही दोनों घरो में किसी बुरे या कमजोर गृह के होने से आयु पर उल्टा प्रभाव पड़ता है। आयु के अतिरिक्त इस घर से वैवाहिक जीवन कुछ हिस्सों का पता चलता है| इस घर में किसी प्रबल गृह के होने से जातक को किसी प्रकार के आसानी से मिलने वाले धन का लाभ प्राप्त होता है। जैसे किसी की म्रत्यु से प्राप्त होने वाला धन आदि।
जन्म कुंडली का नवम भाव
जन्म कुंडली का यह घर भाग्य का घर कहलाता है। इस घर से जातक का भाग्य और धर्म का पता चलता है। इस घर से जातक के पूर्वजों के द्वारा किये गए पुण्य और जातक के पूर्व जन्म में किये गए कर्मों के फल का पता चलता है। किसी प्रबल गृह के प्रभाव से जातक बहुत ही धार्मिक और पुण्यकर्ता होता है और किसी बुरे गृह के प्रभाव से यही विपरीत प्रभाव डालता है। यह घर जातक के विदेश भ्रमण और स्थायित्व के बारे में भी बताता है।
जन्म कुंडली का दशम भाव
कुंडली का दसवां भाव (Daswa Bhav) कर्म-भाव कहलाता है। इस घर से जातक के कर्मो का पता चलता है। इस भाव में किसी बुरे गृह जैसे शनि या राहू का प्रभाव जातक को किसी बुरे कार्यों या व्यवसाय मे संलिप्त करा सकता है जिससे जातक को बहुत अपयश प्राप्त होता है। अतः इस घर से जातक के यश या अपयश का भी ज्ञान किया जा सकता है। संतान से सम्बन्ध और संतान से मिलने वाले सुख और दुःख की जानकारी भी इसी घर से होती है।
जन्म कुंडली का एकादश भाव
एकादश भाव (Ekadash Bhav) को हम लाभ भाव कहते है। इस भाव में हम जातक के मेहनत से कमाए हुए पैसे के अलावा अन्य श्रोतो के बारे में भी पता चलता है। इस भाव से हमें जातक की महत्वाकांक्षा का भी पता चलता है। इस भाव में किसी प्रबल गृह का प्रभाव होने से जातक की रातो रात अमीर होने की इच्छा रहती है जिसके कारण वह जुआ, सट्टेबाजी, लाटरी, व् शेयर मार्केट इत्यादि में लाभ आदि प्राप्त करता है।
जन्म कुंडली का द्वादस भाव
कुंडली का यह भाव व्यव भाव कहलाता है। इस भाव से हम जातक के धन व्यय के बारे में पता चलता है। साथ ही यह भी पता चलता है कि जातक कमाई के अनुरूप धन व्यय करने में सफल या असफल रहेगा। इसके अतिरिक्त यह जातक की बिस्तर पर मिलने वाले सुख को भी दर्शाता है तथा निद्रा लाभ के बारे में भी बताता है। अगर यहाँ किसी बुरे गृह का प्रभाव रहता है तो जातक कमाई से ज्यादा धन व्यय करता है जिसपे उसका नियंत्रण नहीं रहता है। तथा जातक निद्रा लाभ लेने में असमर्थ रहता है।