सौर मंडल में नवग्रहों की उपस्थिति दर्ज हैं जिसका लिखित प्रमाण हमें हमारे इतिहास से मिलता है। उन्हीं नवग्रहों में सूर्य से पाँचवा और सौर मंडल में सबसे बड़ा बृहस्पति ग्रह है। Jupiter Planet ब्रहस्पति ग्रह जिसे गुरू भी कहा गया है एवं रोमन सभ्यता ने अपने देवता Jupiter Planet के नाम पर इसका नाम रखा था। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। गुरु ग्रह ज्योतिष शास्त्र में बहुत बड़ा अहमियत रखता है। राशिचक्र की धनु और मीन राशियों का स्वामी भी बृहस्पति को माना जाता है। ये ज्ञान व बुद्धि के दाता माने जाते हैं। इनकी कृपा से ही जातकों को उचित सलाह मिलती है। वरिष्ठ अधिकारियों का सहयोग मिलता है। व्यवसाय फलता-फूलता है। जातक सही निर्णय लेने में समर्थ होता है।
पौराणिक कथा गुरु बृहस्पति की | Jupiter Planet
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुरु ग्रह मात्र एक मामूली ग्रह है जिसे वह जुपिटर नाम से पुकारते हैं। परन्तु हिंदू पौराणिक ग्रंथों में सभी प्रमुख ग्रहों जिन्हें हम नवग्रह भी कहते हैं के संदर्भ में पौराणिक कथाएं मिलती हैं। Jupiter Planet की भी अपनी पौराणिक कथा मिलती है। ये शुक्र ग्रह के समकालीन हैं और अपनी आरंभिक शिक्षा एक ही गुरु से हासिल की लेकिन चूंकि शिक्षक स्वयं बृहस्पति के पिता थे इसलिये भेदभाव को महसूस कर शुक्र ने उनसे शिक्षा ग्रहण करने का विचार त्याग दिया।
भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक थे ऋषि अंगिरा जिनका विवाह स्मृति से हुआ कुछ इन्हें सुनीथा भी बताते हैं। इन्हीं के यहां उतथ्य और जीव नामक दो पुत्र हुए। जीव बहुत ही बुद्धिमान व स्वभाव से बहुत ही शांत थे। माना जाता है कि इन्होंने इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी। अपने पिता से शिक्षा प्राप्त करने लगे इनके साथ ही भार्गव श्रेष्ठ कवि भी इनके पिता ऋषि अंगिरा से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। लेकिन अंगिरा अपने पुत्र जीव की शिक्षा पर अधिक ध्यान देते थे और कवि को नज़रंदाज करते इस भेदभाव को कवि ने महसूस किया और उनसे शिक्षा पाने का निर्णय बदल लिया। वहीं जीव को अंगिरा शिक्षा देते रहे। जीव जल्द ही वेद शास्त्रों के ज्ञाता हो गये। इसके पश्चात जीव ने प्रभाष क्षेत्र में शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव की कठोर साधना आरंभ कर दी। इनके कठिन तप से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने साक्षात दर्शन दिये और कहा कि मैं तुम्हारे तप से बहुत प्रसन्न हूं। अब तुम अपने ज्ञान से देवताओं का मार्गदर्शन करो। उन्हें धर्म दर्शन व नीति का पाठ पढ़ाओ। जगत में तुम देवगुरु ग्रह बृहस्पति के नाम से ख्याति प्राप्त करोगे। इस प्रकार भगवान शिव शंकर की कृपा से इन्हें देवगुरु की पदवी एवं नवग्रहों में स्थान प्राप्त हुआ। इनकी शुभा, तारा एवं ममता नामक तीन पत्नियां थी। ममता से भारद्वाज एवं कच नामक पुत्रों की प्राप्ति इन्हें हुई।हालांकि कुछ कथाओं में यह भी आता है कि चंद्रमा बृहस्पति के शिष्य थे। इनसे शिक्षा प्राप्त करते-करते बृहस्पति की पत्नी तारा और चंद्रमा के बीच प्रेम संबंध स्थापित हो गया दोनों के मिलन से तारा को पुत्र की प्राप्ति हुई। यह कोई और नहीं स्वयं बुध ग्रह माने जाते हैं। बृहस्पति और चंद्रमा में बुध को लेकर टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी। बृहस्पति बुध को अपना पुत्र बता रहे थे तो चंद्रमा अपना बाद में ब्रह्मा जी हस्तक्षेप से दोनों में समझौता हुआ और तारा ने बुध को चंद्रमा का पुत्र बताया लेकिन समझौते के अनुसार तारा को वापस बृहस्पति के सुपूर्द कर दिया गया। बृहस्पति ने बुध को अपने पुत्र की तरह माना।