श्राध कर्म विधि

कब कौन सा श्राद्ध (Shradh) है? श्राद्ध कर्म विधि

भारत एक विशाल देश जिसकी सुंदरता इसके भीतर मनाए जाने वाले अनगिनत त्यौहार हैं। भारत विश्व भर में प्रसिद्ध है सिर्फ इसीलिए नहीं कि यहाँ के व्यक्ति दिमागी रूप से हर कार्य के लिए सक्षम हैं परन्तु साथ साथ मे भारत ही ऐसा देश है जहाँ हर धर्म में अपने माता पिता का आदर करना सिखाया गया है हालांकि यह भिन्न भिन्न व्यक्तियों के ऊपर है कि वह इनको मान्यता देते हैं या नहीं परन्तु यहाँ अधिकतर मनुष्य माता पिता को ही यह सुंदर सी दुनिया देखने का श्रेय देते हैं।

श्राद्ध कर्म विधि हिन्दूधर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता, पूर्वजों को नमस्कार प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है, हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन देख रहे हैं, इस जीवन का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। श्राद्ध (Shradh) हमारे पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता प्रकट करने का एक सनातन वैदिक संस्कार (Sanatan vaidik sanskar) हैं।

जिन पूर्वजों के कारण हम आज अस्तित्व में हैं, जिनसे गुण व कौशल, आदि हमें विरासत में मिलें हैं। उनका हम पर न चुकाये जा सकने वाला ऋण हैं। उन्होंने हमारे लिए हमारे जन्म के पूर्व ही व्यवस्था कर दी थी। वे हमारे पूर्वज पूजनीय हैं , उन्हें हम इस श्राद्ध पक्ष में स्मरण कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। वास्तव में, वे प्रतिदिन स्मरणीय हैं। श्राद्ध पक्ष विशेषतः उनके स्मरण हेतु निर्धारित किया गया हैं। इस धर्म में, ऋषियों ने वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया, जिस पक्ष में हम अपने पितरेश्वरों का श्राद्ध, तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अर्ध्य समर्पित करते हैं।

श्राद्ध में करें यह नियम

वैसे तो सच्ची श्रद्धा और समर्पण से श्राध कर्म विधि करें तो पितृ प्रसन्न होते हैं, परंतु कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो श्राद्ध के सभी पुण्य प्राप्त होते हैं। हिन्दू धर्म अनुसार पितर लोक को दक्षिण स्थित कहा गया है इसीलिए दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके श्राध कर्म विधि सम्पूर्ण करेंगे तो अच्छा होगा। यह अवश्य ध्यान रखें कि जब भी आप पिंड दान करें तो पिला या सफेद वस्त्र धारण कर लें यह शुभ माना जाता है।  जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं, वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं। श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें। प्रातः एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है। पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध या तर्पण करते समय काले तिल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, क्योंकि शास्त्रों में इसका बहुत महत्व माना गया है। जिस दिन श्राद्ध करें उस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें। श्राद्ध के दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन और कलह से दूर रहें। पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाए तो अच्छा है। केले के पत्ते या लकड़ी के बर्तन का भी प्रयोग किया जा सकता है।

श्राद्ध कर्म विधि पक्ष में यह कार्य न करें

श्राद्ध पक्ष के दौरान कई सारी बातों और नियमों का पालन करना जरूरी होता है। ऐसा शास्त्र भी कहते हैं। लेकिन इसी के विपरीत कुछ ऐसे भी कार्य होते हैं, जिन्हें श्राद्ध पक्ष के दौरान करना निषेध है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसे तमाम दु:खों और तकलीफों से गुजरना पड़ता है। शास्त्र बताते हैं कि श्राद्ध पक्ष के दौरान मसूर की दाल, धतूरा, अलसी, कुलथी और मदार की दाल का प्रयोग निषेध है। इसके अलावा नशीले पदार्थों के सेवन और तामसिक भोजन करने से भी बचना चाहिए। इसके अलावा शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि श्राद्ध पक्ष (Shradh Paksh) के दौरान शरीर पर तेल या साबुन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके अलावा इत्र का भी प्रयोग वर्जित है। श्राध कर्म विधि के दौरान नए घर में प्रवेश की भी मनाही है। इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि पितरों की जहां पर मृत्यु हुई होती है वह उसी घर में जाते हैं लेकिन जब उन्हें वहां कोई नहीं मिलता तो उन्हें काफी तकलीफ होती है। शास्त्र कहते हैं कि यदि श्राद्ध पक्ष में निषेध बातों को व्यक्ति नहीं मानता तो उसे दुख, तकलीफ और कलह का सामना करना पड़ सकता है।

श्राद्ध कर्म विधि (Shradh karm vidhi) की तिथियां

13 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध

14 सितंबर- प्रतिपदा

15 सितंबर-  द्वितीया

16 सितंबर- तृतीया

17 सितंबर- चतुर्थी

18 सितंबर- पंचमी, महा भरणी

19 सितंबर- षष्ठी

20 सितंबर- सप्तमी

21 सितंबर- अष्टमी

22 सितंबर- नवमी

23 सितंबर- दशमी

24 सितंबर- एकादशी

25 सितंबर- द्वादशी

26 सितंबर- त्रयोदशी

27 सितंबर- चतुर्दशी

28 सितंबर- सर्वपित्र अमावस्या

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