जनवरी का महीना यूँ तो अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक नए साल के नए उमंग उल्लास के साथ भरपूर होता है। लोगो में नए साल में नया सीजन का जुनून होता है। जनवरी में इन नए उमंग के साथ कपा देने वाली ठंड भी मौजूद होती है, इसी मौसम में ठंड में आग के पास बैठकर मूंगफली और रेवड़ी खाने का आनंद एक अलग ही अनुभव कराता है।
किसान जिन्हें हम अन्नदाता के नाम से मानते हैं। एक ऐसा पेशा है जहाँ मेहनत बहुत ज्यादा है परन्तु उन्हें अपने हक का सम्मान नही मिल पाता। लोहड़ी (Lohri) का त्यौहार उन्ही किसानों के लिए समर्पित है। किसानों को अपनी फसलों से थोड़े से फुर्सत के पल मिलते हैं, गेंहूं, सरसों, चने आदि की फसलें लहलहाने लगती हैं, किसानों के सपने सजने लगते हैं, उम्मीदें पलने लगती हैं। किसानों के इस उल्लास को लोहड़ी के दिन देखा जा सकता है।
हर्षोल्लास से भरा, जीवन में नई स्फूर्ति, एक नई उर्जा, आपसी भाईचारे को बढ़ाने व अत्याचारी, दुराचारियों की पराजय एवं दीन-दुखियों के नायक, सहायक की विजय का प्रतीक है लोहड़ी का त्यौहार। पंजाब और हरियाणा में इसका जश्न देखने लायक होता है, अब तो यह त्यौहार लोकप्रिय हो गया है जिसके कारण यह विश्व के कई हिस्सों में भी मनाया जाता है। हर साल लोहड़ी का त्यौहार मकर सक्रांति से पूर्व मनाया जाता है जिसकी तारीख 12 से 14 जनवरी के इर्द गिर्द घूमती है। इस वर्ष 2020 में 13 जनवरी को लोहड़ी का उत्सव मनाया जाएगा।
लोहड़ी की कथा
लोहड़ी / Lohri का त्यौहार को भिन्न भिन्न कहानियों के साथ जोड़ा गया है चाहे वह संत कबीर की बेटी लोई हो जिसके कारण पंजाब के कई हिस्सों में लोहड़ी को लोई कहकर भी पूजा जाता है। कभी लोहड़ी की कहानी के पात्र में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती का भी योगदान है।
परन्तु एक कहानी जो बरसो से लोहड़ी का मुख्य वजह बन उभरी है जिसके उपलक्ष में गीत भी बनाए गए हैं। वह है कहानी दुल्ला भट्टी की। दुल्ला भट्टी पंजाब में मुग़ल साम्राज्य के वक्त एक मशहूर लुटेरा था। हालांकि दुल्ला भट्टी क्या था इसमें काफी मतभेद हैं कई उसे लुटेरा कहते थे तो कई उसे महान योद्धा भी बताते थे। इनकी लूट ने अंदाज को आज का रोबिंहूद कहा जाता है यानी अमीरों से लूटना और गरीबों को देना।
एक गरीब ब्राहमण की दो पुत्रियां सुंदरी और मुंदरी के साथ मुग़ल शासक जबरदस्ती विवाह करना चाहता था। दुल्ला भट्टी ने लड़कियों को मुगल शासक के चंगुल से छुड़वाकर स्वयं उनका विवाह किया। उस समय उसके पास और कुछ नहीं था, इसलिए एक शेर शक्कर उनकी झोली में डाल कर उन्हें विदा किया। इस तरह दुल्ला भट्टी ने पिता बन उन दोंनो पुत्रियों का विवाह रचाया। तभी लोहड़ी के गीत में यह गीत बेहद लोकप्रिय हैं जिसके लफ्ज़ हैं।
सुंदरिए मुंदरिए हो.. तेरा कौण बिचारा
हो… दुल्ला भट्टी वाला हो
दुल्ले दी धी ब्याही हो
शेर शक्कर पाई हो…
कुडी दे बोझे पाई-हो-हो
कुड़ी ढा लाल पटाका
कुड़ी ढा शालू पाटा–हो
शालू कोंन समेटे–हो
चाचा गाली देसे–हो
चाचे चूरी कुट्टी–हो
निमीदारां लुट्टी–हो
जिमीदारा सदाए–हो
गिन–गिन पोले लाए–हो
इक पोला घिस गया जिमीदार बोट्टी लें के नस्स गया – हो!
कैसे मनाएं लोहड़ी का त्यौहार
लोहड़ी (Lohri) का त्यौहार मनाने हेतु आपको सामग्री में काफी लकड़ियां चाहिए होंगी और उपलों का भी इंतजाम करना होगा जिसके ढेर लोहड़ी में जलाया जाता है। जिसमें मूंगफली, रेवड़ी, भुने हुए मक्की के दानों को डाला जाता है। लोग अग्नि के चारों और गीत गाते, नाचते हुए खुशी मनाते हैं व भगवान से अच्छी पैदावार होने की कामना करते हैं। अविवाहित लड़कियां-लड़के टोलियां बनाकर गीत गाते हुए घर-घर जाकर लोहड़ी मांगते हैं, जिसमें प्रत्येक घर से उन्हें मुंगफली रेवड़ी एवं पैसे दिए जाते हैं। जिस घर में बच्चा पैदा होता है उस घर से विशेष रुप से लोहड़ी मांगी जाती है।