‘माँ बेटे का है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता’ यह वाक्य दुर्गा माता की आरती से लिया गया है परन्तु इसे व्यक्ति की जीवन में भी उच्च दर्जा प्राप्त है। माँ और बच्चों का बंधन एक मजबूत रिश्ते का प्रतीक है। कहा जाता है कि भगवान हर जगह नहीं हो सकते इसीलिए उन्होंने हमें माँ दी , जिनसे हम अपनी हर दुआएं मांग सके हमें जीवन मे सही राह दिखा सके। माँ बच्चों के लिए बहुत संघर्ष का सामना करती है ताकि उनके बच्चो को आगे जाके कोई दिक्कत का सामना न करना पड़े। आपको छोटी सी चोट पर आपकी माँ घबरा जाती हैं उनका कोमल सा दिल पसीज जाता है। अपने बच्चे के लम्बी स्वस्थ आयु की मांग करते हुए माताएं अहोई अष्टमी को व्रत रखती हैं , जो कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। जिस दिवस दिवाली का जशन पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है ठीक उससे 1 सप्ताह पूर्व उसी दिन यह व्रत भी किया जाता है। माँ इस व्रत में अपने बच्चों के लिए अन्न का त्याग करती है और बच्चों के दीर्घायु की प्राथना करती है।
अहोई अष्टमी व्रत की विधि
इस दिन सभी माताएं उपवास रखती और सायंकाल दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं उसपे रंग भर दे , आप बाजार से बना बनाया चित्र भी ले सकते हैं । जैसे ही सूर्यास्त हो पूजा की शुरुआत करें परन्तु ध्यान रहे उससे पूर्व जमीन को साफ करें । फिर चौक पूरकर, एक लोटे में जल भरकर एक पटरे पर कलश की तरह रखकर पूजा करें। चांदी का एक अहोई या स्याऊ और चांदी के दो मोती बनवाकर डोरी में डलवा लें। फिर रोली, चावल व दूध-भात से अहोई का पूजन करें। जल से भरे लोटे पर स्वास्तिक बना लें। एक कटोरी में हलवा तथा सामर्थ्यानुसार रुपए का बायना निकालकर रख लें और हाथ में सात दाने गेहूं लेकर कथा सुनें। कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें और जो बायुना निकाला था, उसे सासूजी का चरण स्पर्श कर उन्हें दे दें। दीपावली के तुरंत बाद अहोई माता को गले से उतारकर उन्हें गुड़ का भोग लगाएं तथा जल की बूंदे डाल कर स्वच्छ स्थान पर रखें।
चांदी के दाने अहोई में डालते जाएं एक बार डाले अगर आपका पुत्र अविवाहित है और 2 बार अगर वह विवाहित है। ऐसा करने से आपके पुत्र की आयु दीर्घ होगी और वह स्वस्थ रहेगा।
अहोई व्रत कथा
यह प्राचीन कथा की शुरुआत एक स्त्री के भरे पूरे परिवार से होती है । इस स्त्री के 7 पुत्र थे । दीपावली का वक्त नजदीक था तो मकान की लिपाई-पुताई के लिए मिट्टी लाने वह औरत जंगल गई। वहाँ वह एक जगह से मिट्टी खोदने लगी उसी जगह सेई की मांद थी। अचानक उसकी कुदाली सेई के बच्चे को लग गई और वह तुरंत मर गया। स्त्री भयभीत हो गई परन्तु अब वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी उसे अपने किए का बहुत पछतावा हुआ । वह मिट्टी लेकर अपने घर पहुंच गई। कुछ दिन बाद स्त्री का बड़ा लड़का की म्रत्यु हो गई और धीरे धीरे बाकी 6 पुत्रों को भी यही नसीब हुआ। स्त्री बहुत दुखी हुई और अपना दुखड़ा रोने पास की बुजुर्ग महिलाओं को बताई, जिन्होंने ने स्त्री को इसी अष्टमी तिथि को उन सेई और उसके बच्चों के चित्र बनाकर उनकी पूजा करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा सारा पाप धुल जाएगा। तुमसे जो पाप अनजाने में हुआ है उसे ईश्वर अवश्य माफ कर देंगे। उन महिलाओं ने जैसा करने को कहा उस स्त्री ने वैसा ही किया और भगवान ने उसकी झोली में फिर से 7 खिलती मुस्कान दे दी। तब से यह व्रत पूरे भारत प्रचलित हुआ।
कब है अहोई अष्टमी?
इस साल अहोई अष्टमी का व्रत 21 अक्टूबर को मनाया जाएगा जब सभी माताएं अपने पुत्र के लिए यह व्रत रखेंगी और उनके दीर्घ आयु का आशीर्वाद लेंगी।