वास्तु शाश्त्र क्या है?
मानव शरीर जिन पांच तत्वों प्रथ्वी, जल, आग्नि, आकाश और हवा से मिलकर बना होता है उन्ही की पारस्परिक क्रिया को वास्तु शाश्त्र कहते है| इसका मानव जीवन और अन्य प्राणियों पर बहुत पड़ता है| वैसे तो वास्तु शाश्त्र का शाब्दिक अर्थ निवास स्थान होता है| सामान्यतया हम सभी को मकान निर्माण के समय वास्तु का ध्यान रखना चाहिए| मकान के निर्माण के समय हमें किसी भी स्थिति में प्रकृति द्वारा रचित पंच तत्वों प्रथ्वी, जल, आग्नि, आकाश और हवा के बीच बने सामंजस्य में बिलकुल भी बदलाव नहीं करने होते है| चूँकि हम मकान का निर्माण करते समय प्राक्रतिक सामंजस्य (वास्तु शाश्त्र) से छेड़-छाड़ कर रहे होते है अतः हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए की जो हम कर रहे है वास्तु-नियम के विपरीत नही होना चाहिये| अन्यथा हमें इसके दुष्परिणाम का सामना करना पड़ सकता है|
वास्तु का मानव जीवन में महत्व
वास्तु का सही उपयोग हमारे जीवन से नकारात्मक उर्जा को निस्कासित करके सकारात्मक उर्जा की संचार करता है| वास्तु की मूल उर्जा पूर्णतया प्राकृतिक उर्जा पर निर्भर करती है| इस प्राकृतिक उर्जा के श्रोत निम्नलिखित है जैसे-सौर उर्जा, प्रथ्वी से प्राप्त उर्जा, चन्द्र उर्जा, वायु से प्राप्त उर्जा इत्यादि से प्राप्त उर्जा भी वास्तु उर्जा में सम्मिलित है| जब हम इस उर्जा का सदुपयोग करते है तो हमें सुख, शांति, स्वस्थ्य, सम्रद्धि प्राप्ति होती है परन्तु जब हम इसका दुरूपयोग करते है तो हमें इसके दुष्परिणाम का सामना करना पड़ता है| अतः भवन निर्माण के समय हमें आसपास के भूखंड भवन की दिशा इत्यादि को वास्तु के अनुसार ध्यान रखना चाहिए| क्यूंकि भवन निर्माण के समय हमें जल, वायु और अग्नि के सामंजस्य को विशेष ध्यान में रखना चाहिए| अगर इस सामंजस्य का ध्यान नहीं रखते है और इन तीनो तत्वों को गलत स्थान पर रख देते है तो ये अशांति, क्लेश एवं सद्भाव की कमी उत्पन्न हो जाती है|