माँ ब्रह्मचारिणी

माँ ब्रह्मचारिणी – नवरात्र का दूसरा दिन माँ दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा विधि

नवरात्र व्रत यह हिन्दू परम्परा में ऐसे नौ रातों में फैला त्योहार है । इन नौ रातों में देवी शक्ति के नौ स्वरूपों की पूजा आराधना होती है और दसवां दिवस दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्र का यह त्योहार गुजरात में बहुत बड़े स्तर पर मनाया जाता है, जहाँ नवरात्र का अर्थ ही खुशी एवं उमंग होता है । हर रात्रि नवरात्र के रात को गुजरात में गरबा और डांडिया का खास इंतजाम होता है । जिसमे हर उम्र के वर्ग शामिल होते हैं । नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र,आषाढ,अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों – महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं।

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ की सही विधि-आप कैसे करते हैं?

माँ और बच्चों का रिश्ता संसार का सबसे अनमोल रिश्ता माना गया है। मां से कुछ भी प्रेम भावना से मांगो तो माँ अवश्य उस मांग को पूर्ण करती है। तभी माँ के भक्त रूपी बच्चे नवरात्रों का इंतजार बेसब्री से करते हैं।

नवरात्र में माँ के नौ रूप

माँ के नौ रूप की वंदना सनातन काल से चली आ रही है । जहाँ शक्ति की उपासना का पर्व शुरुआत से नवमी तक व्रत करके मनाया जाता है। समापन के माँ रूपी नौ कन्याओं और उनके एक भाई रूप बालक को भोजन परोसा जाता है और उनसे अमूल्य आशीर्वाद लिया जाता है। नवरात्र में हर एक रात को माँ के नौ भिन्न रूप को समर्पित है। वह रूप और उसका वर्णन निम्मनलिखित है।

  • शैलपुत्री:- इस दिन हम हिमालय की पुत्री की पूजा करते हैं ।
  • ब्रह्मचारिणी:- इसका अर्थ है तपस्या आचरण करने वाली ।
  • चंद्रघंटा:- चाँद की तरह खूबसूरत चमकने वाली ।
  • कुष्मांडा:- पूरे जगत जिनके पैरों तले बसा है ।
  • स्कंदमाता:- कार्तिक स्वामी की माता को स्कंदमाता कहा जाता है ।
  • कात्यायनी:- कात्यायन आश्रम में जन्मी माँ कात्यायनी देवी के नाम से पूजनीय है ।
  • कालरात्रि:- काल का नाश करने वाली माँ कालरात्रि के नाम से प्रसिद्ध है ।
  • महागौरी:- माँ सफेद रंग वाली ।
  • सिद्धिदात्री – इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।

माँ चंद्रघंटा – नवरात्र का तीसरा दिन माँ दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा विधि

स्त्री हमारे समाज का वह हिस्सा है जिसके बिन सब अधूरा है । इनके बिना समाज की कल्पना करना ही पाप है । यह आपकी माँ होती है आपकी बहन होती है और आपकी हमसफ़र भी कहलाई जाती है ।

माँ ब्रह्मचारिणी (दुर्गा माँ का स्वरूप)

माँ के कई रूप है और हर रूप में माँ उतने ही प्यारी उतने ही दयालु उतनी ही शक्तिशाली नजर आती है । उन्ही में से माँ का एक रूप है ब्रह्मचारिणी जिसका अर्थ है तप का आचरण करने वाली । इस दिन सभी श्रद्धा पूर्वक माँ के इस रूप के चरणों मे अपना शीश नमन करते हैं । इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। इनके आशीर्वाद से भक्तों में तप , त्याग और संयम की नई उमंग पैदा होती है । कठिन से कठिन कार्यों में भी संयम रखा जाता है । इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की शुरूआत में माँ ब्रह्मचारिणी को फूल अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें तथा उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान करायें व देवी को प्रसाद अर्पित करें।

देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें-

इधाना कदपद्माभ्याममक्षमालाक कमण्डलु

देवी प्रसिदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्त्मा

इसके पश्चात् देवी को पंचामृत स्नान करायें और फिर भांति भांति से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें देवी को अरूहूल का फूल व कमल बेहद प्रिय होते हैं अत: इन फूलों की माला पहनायें, घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें.

“मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठ”

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।

ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

शंकरप्रिया त्वंहि भुक्तिमुक्ति दायिनी।

शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥

“मां ब्रह्मचारिणी का कवच”

त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।

अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी कपोलो॥

पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥

षोडशी सदापातु नाभो गृहो पादयो।

अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Posts

Begin typing your search term above and press enter to search. Press ESC to cancel.

Back To Top