Bhagwan Parshuram

Bhagwan Parshuram Jayanti 2020 | भगवान परशुराम जयंती

Bhagwaan Parshuram भगवान विष्णु के छठे अवतार मने जाते हैं। भगवान विष्णु जिन्हें हम श्रिष्टि के रचनाकर से नवाजते हैं। जिन्होंने अपने 10 अवतार के साथ हमें कई बुरे लोगो के प्रभाव से बचाया। उनके अवतार में अयोध्या के श्रीराम भी आते हैं और रास रचने वाले श्री कृष्ण भी। कहीं यह नरसिंह का अवतार लेकर भक्त प्रह्लाद को बचाते हैं तो कहीं यह भगवान बुद्ध बन शांति का पाठ देते हैं। इन्हीं दशावतार में छठवें अवतार से शामिल Bhagwan Parshuram जी का अहम स्थान है। Bhagwan Parshuram जी जिनके गुस्से का सामना महादेव के पुत्र श्री गणेश को भी करना पड़ा और गणेश जी को एकदन्त नाम से भी जाना जाता है।

कौन थे Bhagwan Parshuram?

Bhagwan Parshuram त्रेता युग के एक ब्राह्मण थे। यह भगवान विष्णु के छठवें अवतार माने जाते हैं, इनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिव जी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये।

आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया।

शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त “शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र” भी लिखा।

इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-“ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।” वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है।

परशु अस्त्र दिया भगवान शिव ने

Bhagwan Parshuram ने अपने पिता की आज्ञा पर अपनी मां का वध कर दिया था, जिसके बाद परशुराम पर मातृ हत्या का पाप लगा था। जिसके बाद Parshuram ने भगवान शिव की तपस्या की और इसी के बाद परशुराम को मातृ हत्या के पाप से मुक्ति मिली. इसके साथ ही भगवान शिव ने उन्हें मृत्युलोक के कल्याणार्थ परशु अस्त्र प्रदान किया था, जिसके कारण वे परशुराम कहलाए।

क्षत्रियों का विनाश 21 बा

एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना समेत भगवान परशुराम के पिता जमदग्रि मुनी के आश्रम पहुंचा था. जहां उसने अपने लालच के चलते परशुराम के पिता जमदग्रि मुनी की कामधेनू को अपने बल से छीन लिया। इस बात का पता लगते ही परशुराम ने सहस्त्रार्जुन का वध कर दिया, जिसके बाद पिता की मृत्यु पर सहस्त्रार्जुन ने परशुराम के पिता का वध कर दिया. पिता की मौत से गुस्साए परशुराम ने इसके बाद 1 या 2 बार नहीं बल्कि पूरे 21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।

कब होती है Parshuram Jayanti

हिन्दू नववर्ष के मुताबिक वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया के दिन Parshuram Jayanti मनाई जाती है, माना जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार Bhagwan Parshuram का भी जन्म हुआ था। जमदग्नि और रेणुका के घर जन्में परशुराम भगवा शिव के परमभक्त थे, ऐसी मान्यता है कि Bhagwan Parshuram आज भी जीवित हैं। न्याय के देवता माने जाने वाले ऋषि परशुराम काफी क्रोधित प्रवृत्ति के माने जाते थे, ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने क्रोध में 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन किया था और तो और भगवान शिव के पुत्र भगवान गणेश भी उनके क्रोध से वंचित नहीं रह सके थे और उन्हें भी इनके गुस्से का शिकार होना पड़ा था।

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