होली मस्ती से भरपूर त्योहार, रंगों का त्योहार। जब भी हम इस त्योहार का नाम अपने मुख द्वारा लेते हैं तो मन मे उमंग की लहर उतपन्न होती है। यह उमंग भक्त प्रह्लाद की अटूट भक्ति के लिए होती है । जिसमे भक्ति की शक्ति मौजूद है। धुलंडी नामक यह त्योहार हमें हरि के बेहद करीब जाने का उनके भक्ति में रंग जाने का अवसर प्रदान करता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। क्योंकि इसी दिन भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और उसे मारने के लिये छल का सहारा लेने वाली होलीका खुद जल बैठी। तभी से हर साल फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। कई स्थानों पर इस त्योहार को छोटी होली भी कहा जाता है।
क्या है होली और राधा कृष्ण का संबंध
होली एक ऐसा उल्लास भरा त्योहार जिसका नाम मात्र ही चेहरे पे खुशियां आ जाती है। रंगों से आसमान और इंसान सब रंगे हुए होते हैं। भगवान भी इस दिवस अपने भक्तों के प्रेम रंग में डूबे हुए होते हैं।
कथा होलिका दहन की
होली की यह कहानी हमें भक्ति की शक्ति का एहसास कराती है। कैसे एक छोटे से बालक की भक्ति उसे मौत के दरवाजे के इतने समीप जाने के बावजूद बिन छुए निकल जाती है यह वाकई एक अद्धभुत चमत्कार ही है। यह कहानी भक्त प्रह्लाद एवं इसके असुर रूपी पिता हिरण्यकश्यप की है। हिरण्यकश्यप अपने ताकत और शक्ति की वजह से इतना घमंडी हो गया कि खुद को ही ईश्वर मानने लगा। राजा होने के नाते उसने अपने राज्य में यह आदेश दे दिया कि अब से राज्य में कोई ईश्वर को नहीं पूजेगा। परन्तु उसका यह आदेश बाकी पर तो चल सकता था पर जो व्यक्ति भगवान के रस में भीग चुका हो उसे कोई चाह कर मिटा सकता यह व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि उसी का पुत्र प्रह्लाद था। प्रह्लाद भगवान हरि का हर वक्त गुणगान किया करता। वह भक्ति की ऐसी मिसाल पेश करता था कि उसके असुर पिता जी से यह बर्दाश्त करना मुश्किल था इसीलिए उसने भक्त प्रह्लाद को कई बार नष्ट करने की साजिश रची परंतु वह हर बार प्रभु की कृपा से बच जाता। अंत मे उसने हिम्मत हारकर अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में बैठकर अग्नि में जला कर मार देने का आदेश दिया क्योंकि होलिका को यह वरदान था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। यहाँ भी भगवान की लीला देखिए होलिका भस्म हो गई परन्तु प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। तभी से यह पर्व बुराइपर अच्छाई की जीत का प्रतीक बना। प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।
कैसे बनाया जाता है होली
माघ पूर्णिमा से ही इसकी शुरुआत कर दी जाती है। गुलर वृक्ष की टहनी को खुली जगह देख वहाँ गाड़ दिया जाता है, जिसे होली का डंडा गाड़ना भी कहते हैं। इसके बाद कंटीली झाड़ियां या लकड़ियां इसके इर्द गिर्द इकट्ठा की जाती हैं। फिर फाल्गुन पूर्णिमा के दिन गांव की महिलाएं, लड़कियां होली का पूजन करती हैं। महिलाएं और लड़कियां भी सात दिन पहले से गाय के गोबर से ढाल, बिड़कले आदि बनाती हैं, गोबर से ही अन्य आकार के खिलौने भी बनाए जाते हैं फिर इनकी मालाएं बनाकर पूजा के बाद इन्हें होली में डालती हैं। इस तरह होलिका दहन के लिये तैयार होती है। होलिका दहन के दौरान जो डंडा पहले गड़ा था उसे जलती होली से बाहर निकालकर तालाब आदि में डाला जाता है इस तरह इसे प्रह्लाद का रुप मानकर उसकी रक्षा की जाती है। निकालने वाले को पुरस्कृत भी किया जाता है। लेकिन जोखिम होने से यह चलन भी धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है।
होलिका पूजा विधि
पूजा सामग्री में एक लोटा गंगाजल यदि उपलब्ध न हो तो ताजा जल भी लिया जा सकता है, रोली, माला, रंगीन अक्षत, गंध के लिये धूप या अगरबत्ती, पुष्प, गुड़, कच्चे सूत का धागा, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल एवं नई फसल के अनाज गेंहू की बालियां, पके चने आदि।
पूजा सामग्री के साथ होलिका के पास गोबर से बनी ढाल भी रखी जाती है। होलिका दहन के शुभ मुहूर्त के समय चार मालाएं अलग से रख ली जाती हैं। जो मौली, फूल, गुलाल, ढाल और खिलौनों से बनाई जाती हैं। इसमें एक माला पितरों के नाम की, दूसरी श्री हनुमान जी के लिये, तीसरी शीतला माता, और चौथी घर परिवार के नाम की रखी जाती है। इसके पश्चात पूरी श्रद्धा से होली के चारों और परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत के धागे को लपेटा जाता है। होलिका की परिक्रमा तीन या सात बार की जाती है। इसके बाद शुद्ध जल सहित अन्य पूजा सामग्रियों को एक एक कर होलिका को अर्पित किया जाता है। होलिका दहन के बाद होलिका में कच्चे आम, नारियल, सतनाज, चीनी के खिलौने, नई फसल इत्यादि की आहुति दी जाती है। सतनाज में गेहूं, उड़द, मूंग, चना, चावल जौ और मसूर मिश्रित करके इसकी आहुति दी जाती है।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन 2020 में 9 मार्च को होगी अथवा खेलने वाली होली का आरंभ अगले दिन यानी 10 मार्च को।
होलिका दहन मुहूर्त : 18:26:23 से 20:52:21 तक
अवधि : 2 घंटे 25 मिनट
भद्रा पुँछा :09:50:36 से 10:51:24 तक
भद्रा मुखा :10:51:24 से 12:32:44 तक