विद्यार्थी वक्त में यह विषय सबसे ध्यान पूर्वक कहा जाता है। हमारे सूर्य और उसके ग्रहीय मंडल को मिलाकर यह सौर मंडल उतपन्न होता है। सौर मंडल जिसमे आठ ग्रह, उनके 172 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है। इस लेख में शुक्र ग्रह के बारे में ज्योतिषी ज्ञान दिया जाएगा।
शुक्र ग्रह
शुक्र ग्रह जिसे भौर का तारा भी कहा गया है। इन्हें अपने सौंदर्य के लिए भी जाना जाता है सुंदरता भी ऐसी की ज्योतिष विद्या में इन्हें सौंदर्य का देवता कहा जाता है। जीवन में दो वस्तु जिसके पूरे समाज मे हर व्यक्ति की जरूरत है वह है भाग्य एवं प्रेम । इन दोनों का कारक भी शुक्र को कहा गया है। पौराणिक ग्रंथों में शुक्र को भृगु ऋषि का पुत्र बताया गया है जिनका नाम कवि और भार्गव बतलाया जाता है जिन्होंने अपने तपोबल से दैत्य गुरु की पदवी प्राप्त की। आइये जानते हैं दैत्य गुरु शुक्राचार्य के शुक्र बनने की कहानी।
पौराणिक कथा
कई पौराणिक कथा और इससे जुड़े तथ्य खोज ने के बाद एक यह कथा जो शुक्र देव के सम्बंध में है। इस पौराणिक कथा अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भृगु ऋषि का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या ख्याति से हुआ जिससे धाता,विधाता दो पुत्र व श्री नाम की कन्या का जन्म हुआ। भागवत पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के कवि नाम के पुत्र भी हुए जो कालान्तर में शुक्राचार्य नाम से प्रसिद्ध हुए।
महर्षि अंगिरा के पुत्र जीव यानी गुरु तथा महर्षि भृगु के पुत्र कवि यानि शुक्र समकालीन थे। यज्ञोपवीत संस्कार के बाद दोनों ऋषियों की सहमति से अंगिरा ने दोनों बालकों की शिक्षा का दायित्व लिया। कवि महर्षि अंगिरा के पास ही रह कर अंगिरानंदन जीव के साथ ही विद्याध्ययन करने लगा। लेकिन जैसे-जैसे दोनों बड़े होते जा रहे थे महर्षि का ध्यान अपने पुत्र पर ज्यादा केंद्रित हो रहा था और कवि की वे उपेक्षा करने लगे। इस महसूस करते हुए कवि ने उनसे इजाजत ली और आगे की शिक्षा लेने के लिये गौतम ऋषि की शरण में जा पंहुचे। गौतम ऋषि ने उनकी व्यथा को सुनकर उन्हें भगवान भोलेनाथ की शरण लेने की सलाह दी। अब कवि ने गोदावरी के तट पर भोलेनाथ की तपस्या आरंभ कर दी। उनके कठोर तप को देखते हुए भगवान शिवशंकर प्रसन्न हुए और महादेव ने उन्हें ऐसी दुर्लभ मृतसंजीवनी विद्या दी जो कि देवताओं को भी नसीब नहीं होती थी। इस विद्या के पश्चात वह मृतक शरीर में भी प्राण डालने में सक्षम हो गये थे। इसके साथ ही भगवान शिव ने उन्हें ग्रहत्व प्रदान किया और वरदान दिया कि तुम्हारा तेज सभी नक्षत्रों से अधिक होगा। परिणय सूत्र में बंधने जैसे मांगलिक कार्य भी तुम्हारे उदित होने पर ही आरंभ होंगे। अपनी विद्या व वरदान से भृगु के पुत्र कवि ने दैत्यगुरु का पद प्राप्त किया। यहां तक उन्हें सिर्फ कवि और भृगु पुत्र होने के कारण भार्गव नाम से दैत्यगुरु के रूप में जाना जाता था।
कैसे हुई शुक्र नाम की प्राप्ति
कवि या भार्गव के नाम से प्रसिद्ध थे, परन्तु इन्हें यह नाम कैसे मिला? इसका अध्ययन भी वामन पुराण में कहा गया है ।