सूर्य की संक्रांति और चन्द्रमा पर आधारित होने वाले Hindu panchang के 12 मास होते हैं। जिनमे 11 दिन का अंतर आ जाता है जो लगभग एक माह का हो जाता है। इसलिए हर तीसरे वर्ष Kharmas आ जाता है। इसको लोकाचार में मलमास भी कहा जाता है। आषाढ़ शुक्ल एकम से पुरुषोत्तम मास शुरू हो गया है। इसी माह को Kharmas, मलमास, आदि नामों से भी पुकारा जाता है। इस अवधि में सभी शुभ कार्य त्याज्य रहेंगे। जो कार्य इस वक्त त्याग करना चाहिए वह कार्य कुछ इस प्रकार हैं जैसे कि ग्रह प्रवेश, तिलक, विवाह, मुंडन, गृह आरंभ, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत या उपनयन संस्कार, निजी उपयोग के लिए भूमि, वाहन, आभूषण आदि का क्रय करना, संन्यास अथवा शिष्य दीक्षा लेना, नववधू का प्रवेश, देवी-देवता की प्राण-प्रतिष्ठा, यज्ञ, वृहद अनुष्ठान का शुभारंभ, अष्टाकादि श्राद्ध, कुआं, बोरिंग, तालाब का खनन आदि का त्याग करना चाहिए।
Kharmas की गणना
सूर्य की गति पर आधारित सौर वर्ष एवं चांद की गति पर चंद्र वर्ष आधारित होता है। 12 राशियों को पार करने में सूर्य जहाँ 365.25 दिन लगाता है तो वही चंद्रमा को 354.36 दिन लगते हैं। इसलिये ज्योतिषीय गणना को सही रखने के लिये तीन साल बाद चंद्रमास में एक अतिरिक्त माह जोड़ दिया जाता है। इसे ही Kharmas कहा जाता है।
क्यों कहा जाता है Kharmas?
पौराणिक मान्यता है कि शकुनि, चतुष्पद, नाग व किंस्तुघ्न यह चारों करण रवि का मल होते हैं। सूर्य का संक्रमण इनसे जुड़े होने के कारण अधिक मास को kharmas भी कहा जाता है।
Kharmas में क्या करें?
पुरषोत्तम मास को ही मलमास या अधिक मास का व्याख्यान किया जाता है । जिस मास में सूर्य संक्रांति नहीं होता उसे मलमास कहकर पुकारा जाता है। इस वक्त सभी तरह के मांगलिक कार्यों को करने से दूरी बनानी चाहिए। परन्तु इस वक्त अगर व्यस्कति दान करने, ईश्वर के लिए व्रत रखना हो या हवन करने से मन को शांति प्रदान होती है।
धार्मिक ग्रन्थों में Kharmas
Kharmas में हमे ज्यादातर समय भगवान के ध्यान में खुद को समर्पित कर देना चाहिए। जैसे कि धार्मिक किताबें, कथा को पढ़ना चाहिए। सभी से ज्ञान बांटना चाहिए। यह सब करना इस वक्त शुभ रहता है।
दिनचर्या कैसे व्यतीत करें
अधिक मास में जातक की दिनचर्या की शुरुआत ब्रह्म मुहूर्त से होगी। जातक को ब्रह्म मुहूर्त में उठके सबसे पहले स्नान करना चाहिए। सूर्य भगवान को जल अर्पित करें पर ध्यान रखे जिस बर्तन से जल अर्पित करेंगे वह तांबे का हो। सुबह शाम मंदिर में भगवान के दर्शन करें। अपने मन को धार्मिक कार्यों में व्यस्त करें। एक समय ही भोजन करें। जमीन पर ही नींद ले।
परमोधर्म दान
समाज में मौजूद हर व्यक्ति से कभी न कभी पाप हो ही जाता है। उसे अपने जीवन काल मे सिर्फ एक बार वह वक्त मिलता है जब व्यक्ति को अपने पाप को पुण्य में बदलने का मौका मिलता है। यह अधिक मास का वक्त मनुष्य को पुण्य प्राप्त करने का मौका देता है। मान्यता है कि इस वक्त दान , पूजा एवं प्रभु का ध्यान करने से मनुष्य को पुण्य प्राप्त होता है।
इस माह में विशेष कर रोग निवृत्ति के अनुष्ठान, ऋण चुकाने का कार्य, शल्य क्रिया, संतान के जन्म संबंधी कर्म, सूरज जलवा आदि, गर्भाधान, पुंसवन, सीमांत जैसे संस्कार किए जा सकते हैं।