“आपके कुंडली में राहु केतु का दोष है” यह वाक्य ज्योतिषों द्वारा कुंडली पढ़ते दौरान कहा जाता है। इसमें राहु और केतु दो ऐसे ग्रह हैं जिसका वास कोई भी अपने कुंडली मे लाना नहीं चाहेगा। ज्योतिष इन्हें पापी ग्रह के नाम से परिभाषित करती है। ऐसा माना जाता है की राहु केतु की किसी व्यक्ति विशेष की कुंडली मे उपस्थित ही उस व्यक्ति के जिंदगी में मुश्किलों का कारण होते हैं। इन दोनों ग्रह ने लोगों को अपने प्रभाव से भयभीत किया हुआ है। इन्हें छाया ग्रह के नाम से भी नवाजा गया है । यह अपना प्रभाव ग्रह के मुताबिक ढाल लेता है। इसका खुद का कोई अस्तित्व नहीं होता।
राहु केतु (Rahu Ketu) की शुरुआत
इसका सम्पर्क हमें सागर मंथन में मिलता है जब सब देवता अमृत का सेवन करने वाले थे तभी एक दैत्य ने अपना रूप बदल देवताओं के समूह में शामिल हो गया एवं अमृत का सेवन कर लिया। सूर्य देव और चंद्र देव को इस चालाकी का ज्ञात हुआ और वह देव बोल उठे की यह दैत्य है। भगवान विष्णु ने यह बात सुनते ही सुदर्शन चक्र से दैत्य के वध करने की कोशिश की परन्तु अमृत का सेवन करने के कारण वह दैत्य मरा नहीं किंतु वह दो भागों में बंट गया जिसमें ऊपरी हिस्सा राहु तो धड़ का हिस्सा केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
ऐसा माना गया है जिस व्यक्ति के कुंडली में राहु केतु का दोष हो वह व्यक्ति खुद पर काबू नहीं रख पाता और वह गलत निंर्णय करता है चाहे वह जीवन के प्रति हो चाहे वह रिश्ते के प्रति।
जाने कैसे कम करें इसका प्रकोप
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः। यह मंत्र का जप 18000 की संख्या में किया जाए तो राहु का कुंडली में प्रकोप कम हो सकता है। इससे पीड़ित व्यक्ति को शनिवार का व्रत रखना चाहिए और राहु यंत्र की स्थापना से भी इसका प्रकोप काफी हद तक काबू में लाया जाता है। मीठी रोटी कौए को दे और ब्राह्मण और गरीबों को चावल खिलाएं। रात को तकिए के नीचे जों रखे और उसे सुबह दान कर दे इससे भी राहु दोष कम होता है। ठीक इसी तरह कुंडली मे केतु का प्रभाव कम करने हेतु मंत्र का जप 17000 की संख्या में किया जाए। ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः यह मंत्र के जप के साथ केतु यंत्र के ग्रह स्थापना आपके दोष की समाप्ति करेगा। गरीब को दान करने के लिए यह वस्तु जरूर प्रदान करें जैसे कि कम्बल, लोहे से बने हथियार, तिल।
इन लिखित उपायों के साथ आप यह मंत्र “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” का भी 108 बार जप करें यह सभी 9 ग्रहों में दोष का निवारण करते हैं।