मांगलिक दोष क्या है?
ज्योतिष शाश्त्रियों द्वारा मनुष्य के जन्म के समय ग्रहों, नक्षत्रों, सूर्य और प्रथ्वी की स्थिति के अनुसार जन्म कुंडली की गणना की जाती है| जिसमे मनुष्य के जीवन में घटित होने वाली घटनाओं की आशंका व्यक्त की जाती है| इन घटनाओं की गणना कुंडली में एक विशेष प्रकार की स्थिति या योग को देखकर किया जाता है| इन घटनाओ को ज्योतिष शाश्त्र की भाषा में दोष कहते है| ज्योतिष शास्त्र में अलग-अलग स्थितियों के अनुसार दोषों की गणना की जाती है| जिनमे से एक मांगलिक दोष प्रमुख दोष है| जन्म-कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, और द्वादस भाव् में से किसी एक भाव में मंगल का होना जातक के मांगलिक होने का संकेत देता है|
मांगलिक दोष के प्रभाव
मांगलिक दोष मनुष्य के जीवन में दांपत्य जीवन पर अपना प्रभाव डालता है| इससे प्रभावित जातक के जीवन साथी की आयु-हानि ( मृत्यु ) का संकेत या फिर दाम्पत्य सुख का अभाव होता है| इसके अतिरिक्त मांगलिक दोष से प्रभावित जातक स्वभाव से बहुत ही गुस्सैल होते है| इनके घर में प्रायः बिद्युत उपकरणों का नुकसान होता रहता है| मंगल दोष से प्रभावित जातक को रक्त से सम्बंधित बीमारियाँ ज्यादा प्रभावित करती है|
मंगल दोष से बचने के उपाय
केवल मंगल दोष के होने से जातक को दाम्पत्य सुख की प्राप्ति नहीं होती ऐसा कहना सर्वथा सही नहीं है क्यूंकि इसके कई और कारण है जिससे की दांपत्य जीवन में अनबन रहती है| वैसे शाश्त्रों की मान्यता के अनुसार मांगलिक जातक को अपना जीवन साथी भी मांगलिक ही चुनना चाहिए जिससे के मांगलिक का प्रभाव ख़त्म हो जाता है| हनुमान जी को मंगल का स्वामी माना जाता है इस लिए मांगलिक दोष से पीड़ित लोगो को हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए वो सारी अमंगल स्थितियों का नाश कर देते है|
यदि प्रथम, चतुर्थ, सत्प्तम, अष्टम, और द्वादस भाव में राहू, केतु, या शनि आदि स्थित होते है तो ऐसे में भी मंगल निष्प्रभावी हो जाता है| यदि मंगल पर गुरु की पूर्ण दृष्टि हो तो भी मंगल निष्प्रभावी हो जाता है| यदि मंगल अपनी मित्र राशि सिंह, कर्क, मीन, धनु राशि में हो तो मंगल प्रभाव हीन हो जाता है|