शिशु के जन्म से ही माता पिता इस चिंता में विलीन हो जाते हैं कि उनका पुत्र का भविष्य कैसे वितीत होगा। पुत्र के भाग्योदय का कारण ज्योतिष में शिशु के जन्मकुंडली में शुभ योग का होना होता है। जन्मकुंडली में ऐसे बहुत सारे योग बनते हैं जिसे हम शुभ योग कह सकते हैं। यह योग ही मनुष्य के आगे के सफर को पहचानने में मदद में लिया जाता है। इनमें से एक योग आर्थिक स्थिति को तो मजबूत करता ही है और साथ मे शक्ति और बुद्धि में भी विकास करता है। यह योग मानव के जीवन मे उच्च पद नेता या अभिनेता बनने का योग भी बनाता है। इस योग को ज्योतिष गजकेसरी योग कहते हैं।
क्या है ये गजकेसरी योग?
प्रमुख धन योगों में से एक माना गया गजकेसरी योग, गुरु और चंद्र के योग से बनता है। इसे ज्योतिष बेहद शुभ योग मानते है। कुंडली के किसी भी भाव मे गुरु और चंद्रमा का योग बन रहा हो तथा किसी पाप ग्रह की दृष्टि उस पर न जा रही हो तो यह बहुत शुभ माना जाता है।
कैसे बनता है यह गजकेसरी योग?
कुंडली मे गजकेसरी योग का बनना बहुत सौभाग्यशाली माना गया है। केंद्र में गुरु और चंद्र एक दूसरे को देख रहे हो तो यह योग बनता है। प्रबल या कहें प्रभावकारी गजकेसरी योग का निर्माण गुरु की चंद्रमा पर पांचवी या नवीं दृष्टि से भी बनता है। यदि गुरु और चंद्रमा कर्क राशि में एक साथ हों और कोई अशुभ ग्रह इन्हें न देख रहा हो तो ऐसे में यह बहुत ही सौभाग्यशाली गजकेसरी योग बनाते हैं। इसका कारण यह भी है कि गुरु को कर्क राशि में उच्च का माना जाता है और चंद्रमा कर्क राशि के स्वामी होने से स्वराशि के होते हैं। प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम स्थान को केंद्र माना जाता है यदि शुभ भाव में केंद्र में गजकेसरी योग बन रहा हो तो यह भी शुभ फल देने वाला होता है इसके अलावा त्रिकोण में पांचवे या नौंवे भाव में भी गजकेसरी योग शुभ होता है। यदि छठे, आठवें या द्वादश भाव में यह योग न हो और गुरु की राशि मीन या धनु अथवा शुक्र की राशइ वृष में बन रहा हो तो लाभ देने वाला रहता है। छठे, आठवें या बारहवें भाव में यह योग बन रहा हो तो बहुत कम प्रभावी होता है। चंद्रमा या गुरु की नीच राशि में यह योग बन रहा हो तो उसमें भी इस योग से मिलने वाले परिणाम नहीं मिलता यानि यह निष्फल रहता है। यदि नीच दोष भंग हो रहा हो तो ऐसे में इस योग के शुभ फल देने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
इसके अलावा गजकेसरी योग जिस भाव या राशि में बन रहा होता है उसके अनुसार शुभाशुभ परिणाम इससे मिलते हैं। गजकेसरी योग के पूर्ण फल प्राप्ति हेतु यह अत्यन्त आवश्यक है कि चन्द्रमा एवं गुरु दोनों ही मित्रक्षेत्री, शुभ भावेश दृष्टि-युक्त एवं शुभ भावस्थ हों। इसके अलावा एक शर्त यह भी है कि चन्द्रमा के आगे या पीछे सूर्य के अलावा शेष मुख्य पाँच ग्रहों में से कोई न कोई ग्रह होना चाहिए। अन्यथा ‘केमद्रुम’ जैसा भयंकर पातकी योग बन जाएगा। ऐसी अवस्था में गुरु एवं चन्द्रमा परस्पर केन्द्र में हों और उच्च के ही क्यों न हों ‘केमद्रुम’ अपना प्रभाव अवश्य ही दिखाएगा। प्रायः गुरु एवं चन्द्रमा परस्पर केन्द्र में होने के बजाय यदि एक साथ हों तो उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त होगा। पुनः परस्पर केन्द्र में होते हुए भी गुरु और चन्द्रमा में जो विशेष बली होकर जिस भाव में स्थित होगा उसी ग्रह का तथा उसी भाव का फल प्राप्त होगा।