होली एक ऐसा उल्लास भरा त्योहार जिसका नाम मात्र ही चेहरे पे खुशियां आ जाती है। रंगों से आसमान और इंसान सब रंगे हुए होते हैं। भगवान भी इस दिवस अपने भक्तों के प्रेम रंग में डूबे हुए होते हैं। हर प्रेमी जोड़ा होली के वक्त एक दूसरे को रंग के राधा कृष्ण जैसे प्रेम प्रस्तुत करना चाहते हैं। अब आप यह सोच रहे होंगे कृष्ण राधा ही क्यों? बल्कि इन दोनों का तो विवाह भी नहीं हुआ था। आईए जानते हैं राधा कृष्ण का होली से क्या है नाता।
होलिका दहन – होली की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
होली मस्ती से भरपूर त्योहार, रंगों का त्योहार। जब भी हम इस त्योहार का नाम अपने मुख द्वारा लेते हैं तो मन मे उमंग की लहर उतपन्न होती है। यह उमंग भक्त प्रह्लाद की अटूट भक्ति के लिए होती है । जिसमे भक्ति की शक्ति मौजूद है।
होली से जुड़ी राधा कृष्ण (Radha Krishn) की कथा
“यशोमति मैया से बोले नंदलाला, राधा क्यों गौरी मैं क्यूं काला।” यह प्रसिद्ध गीत जिसमें कृष्ण जी माता यशोदा से अपने सांवले रंग का हाल बयान करते हैं और न जाने ऐसे कितने ही गीत में उनके सांवले रंग का जिक्र है । श्रीकृष्ण जिनका जन्म द्वापरयुग में विष्णु जी के 8वें अवतार के नाते एवं वासुदेव जी और माँ देवकी के 8वें संतान के रूप में हुआ जब वासुदेव जी और देवकी जी कारावास में अपना समय व्यतीत कर रहे थे। उन्हें कारावास में रखने वाला देवकी माँ के भाई यानी रिश्ते में कृष्ण के मामा कंस ही थे। कंस बहुत ही अत्याचारी था वह श्रीकृष्ण को मार देना चाहता था। इसीलिए मामा कंस ने राक्षसी पुतना को जन्माष्टमी के दिन जन्मे शीशुओं को स्तन से विषपान करवाकर मरवाने के लिये भेजा तो श्री कृष्ण ने विषपान तो किया लेकिन भगवन का क्या बिगड़ना था, पुतना तो मारी गई लेकिन बाल गोपाल विषपान करने से श्याम वर्ण के हो गये। अब उन्हें यह चिंता सताने लगी कि इस श्याम रंग के साथ प्रिय सखी राधा सहित अन्य गोपियां उन्हें भाव नहीं देंगी। गौर वर्णीय राधा को जब भी वे देखते उन्हें स्वयं का श्याम वर्ण होना अखरने लगता। तो यशोदा माँ ने उन्हें यह सुझाव दिया कि “हे कृष्ण! , तुम आज राधा को अपने ही रंग में रंग दो।” बस माता की शय मिलने की देर थी, नटखट श्याम राधा सहित सभी गोपियों को रंगने लग जाते हैं। धीरे-धीरे उनकी यह शरारत फैलने लगती है और ऋतुराज वसंत के इस प्यार भरे मौसम में एक दूसरे पर रंग डालने की यह लीला एक प्रेममयी परंपरा के रूप में हर साल फाल्गुन के महीने में निभायी जाने लगती है। होली के दिनों में मथुरा वृंदावन का नजारा तो आज भी देखते ही बनता है।
महत्व होली और राधा कृष्ण का
होली में रची गई यह लीला को प्रेम लीला कह पुकारा जाता है परन्तु यह प्रेम लीला यह मात्र नाम तक ही सीमित है दरअसल यह प्रेम भक्ति भाव से है जिस प्रकार मीरा भी भगवान के प्रेम में डूबी हुई थी ठीक उसी प्रकार राधा और अनेक गोपियां भगवान के भक्ति के रंग में डूबी हुई थी । भगवान का रंग है, सद्भावना का रंग है, विश्वास का रंग है जिनसे होली खेली जाती है। और जो होली जलाई जाती है वह संदेह की, अंहकार की, वैरभाव की, ईर्ष्या की होली जलाई जाती है जिसके उपरांत ही निष्काम प्रेम की कामना पूर्ण होती है और अपने आराध्य श्री कृष्ण की अपने ठाकुर जी की कृपा प्राप्त होती है।