इस साल 30 मई 2019 को मनाए जाने वाला अपरा एकादशी का भारत मे काफी महत्व है । अपरा एकादशी को अचला एकादशी भी कहा जाता है । इसे ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है । इस एकादशी में मूल रूप से भगवान विष्णु जी की आराधना की जाती है । यह सौभाग्य, करियर, संतान व परिवार के सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है । हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक पूरे साल यानी 365 दिन में 24 दिन एकादशी का पर्व आता है । मलमास या अधिकमास की दो एकादशियों सहित इनकी संख्या 26 हो जाती है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी का खास महत्व होता है। वैसे समस्त एकादशियों में ज्येष्ठ मास की शुक्ल एकादशी जिसे निर्जला एकादशी कहा जाता है, सर्वोत्तम मानी जाती है। वहीं ज्येष्ठ मास की कृष्ण एकादशी जिसे अपरा या अचला एकादशी कहा जाता है, का भी कम महत्व नहीं है।
अपरा एकादशी व्रत की कथा
दो भाइयों के बीच का द्वेष यह किस्सा नया नहीं है । व्यक्ति अपने जीवन ने प्रेम, धन के मोह माया सा बंधा हुआ होता है और यही प्रेम या धन किसी एक भाई को मिले तो दूसरे को उससे ईर्ष्या होती ही है । इसी प्रकार पौराणिक कथा अनुसार प्राचीन काल में महिध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज अधर्मी और अन्यायी होने के साथ ही अपने बडे भाई के प्रति द्वेष रखता था। एक दिन मौका पाकर उसने अपने बडे भाई राजा महिध्वज की हत्या कर दी और मृत शरीर को जंगल में एक पीपल के वृक्ष के नीचे जमीन में गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की अात्मा प्रेत रूप में पीपल के पेड़ पर रहने लगी और रास्ते से गुजरने वाले लोगों को परेशान करने लगी। एक दिन धौम्य नामक ऋषि उधर से गुजर रहे थे, तो उन्हें इस बात की जानकारी मिली। अपने तपोबल से उन्होंने उसके प्रेत बनने का कारण जाना और पीपल पेड़ से उतार कर परलोक विद्या का उपदेश दिया। प्रेतात्मा को मुक्ति के लिये अपरा एकादशी व्रत करने का मार्ग दिखाते हैं और उसकी मुक्ति के लिए खुद ही अपरा एकादशी का व्रत रखा। द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर उन्होंने इसका पुण्य प्रेत को दे दिया। व्रत के प्रभाव से राजा की आत्मा को प्रेतयोनि से मुक्ति मिल गई और वह बैकुंठधाम को चला गया।
अपरा एकादशी व्रत की पूजा विधि
एकादशी का व्रत करने के लिए व्यक्ति को पवित्र जल से नहाकर साफ वस्त्र धारण कर लेना चाहिए। इसके बाद पूजा घर में या मंदिर में भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की मूर्ती स्थापित करें। रक्षा सूत्र बांधे। इसके बाद घी का दीपक जलाएं। विधिपूर्वक भगवान की पूजा करें और दिन भर उपवास करें। व्रत के अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं फिर खुद भोजन करें । अपरा एकादशी व्रत में साफ सफाई एवं मन की स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाता है। व्रत का प्रारंभ दशमी तिथि को हो जाता है। ऐसे में व्रती को दशमी तिथि से ही भोजन और आचार-विचार में संयम रखना चाहिए। एकादशी तिथि के दिन सुबह जल्द उठ कर स्नानादि कर व्रत का संकल्प और भगवान विण्णु की पूजा करनी चाहिए। पूजन में तुलसी, चंदन, गंगाजल और फल का प्रसाद अर्पित करना चाहिए। इस दिन व्रती को छल-कपट, बुराई और झूठ से परहेज करना चाहिए। इस दिन चावल भी नहीं खाना चाहिए। एकादशी के दिन जो व्यक्ति विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है।